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केतु की महादशा के प्रभाव और उपचार/ Ketu Mahadasha Effects and Remedies

केतु महादशा/Ketu Mahadasha में, व्यक्ति अतीत को लेकर चिंतित रहता है और समय का अनुचित कार्यान्वयन होने के कारण, योजनाएं कार्यान्वित नहीं हो पाती हैं। छठे, आठवें या बारहवें भाव में बुरे प्रभावों के कारण केतु, समस्याओं को दर्शाता है, जिससे व्यक्ति रोगभ्रम की स्थिति में रहते हुए, लगातार स्थानांतरित होता है और मानसिकता के कारण कष्ट पाता है। हालांकि, व्यक्ति धार्मिक स्थानों, आध्यात्मिक वार्तालाप, तीर्थयात्राओं, योगियों और पवित्र लोगों की संगति में सहजता का अनुभव करता है।

केतु-दशा में भुक्तियां/ Bhuktis in Ketu-Dasa 

केतु भुक्ति का परिणाम लगभग वैसे ही होता है जैसे पहले कहे गए हैं। केतु जिस भाव में मंद होता है उसी भाव और उसमें मौजूद ग्रहों की युति को कम कर देता है। अतः, केतु भुक्ति के परिणामों को केतु की स्थिति के माध्यम से समझा जा सकता है। 

केतु-शुक्र दशा/ Ketu-Venus Dasha

लग्न या केतु से तीसरे या ग्यारहवें भाव के कोणों में स्थित उच्च का शुक्र राजसी कृपा, धन लाभ, मनपसंद विभाग में ट्रांस्फर, विवाह, महिलाओं से सहारा और लाभ को दर्शाता है। वहीं, लग्न या केतु से छठे, आठवें या बारहवें भाव में, कमजोर और पीड़ित शुक्र नेत्र संबंधित समस्याओं, सिरदर्द, कमजोर नैतिकता के कारण लोकप्रियता और सम्मान की हानि, पत्नी और बच्चों की  समस्याओं को दर्शाता है। दूसरे या सातवें भाव में शुक्र के पीड़ित होने पर, मूत्राशय से संबंधित इन्फेक्शन और मारक परिणाम मिलते हैं।

केतु-सूर्य दशा/ Ketu-Sun Dasha

लग्न या केतु से ग्यारहवें भाव के कोणों में उच्च का सूर्य, कार्यों, स्वास्थ्य, धन, समृद्धि और पुत्रजन्म की सफलताओं को दर्शाता है। लग्न या केतु से छठे, आठवें, या बारहवें भाव में पीड़ित सूर्य माता-पिता से अलगाव, सरकारी दंड, ट्रांस्फर, धन की हानि, सनस्ट्रोक, आँखों में दर्द और वरिष्ठों के विरोधी होने का संकेत मिलता है। वहीं, दूसरे या सातवें भाव में पीड़ित सूर्य के अशुभ परिणामों और मारक प्रभावों के कारण, व्यक्ति अस्वस्थ रहता है।

केतु-चंद्र दशा/ Ketu-Moon Dasha

लग्न या केतु से ग्यारहवें भाव के कोणों में प्रकाशमान उच्च का चंद्रमा, मध्यम रूप से अच्छा होता है जो कि  धन-संपत्ति का लाभ, परोपकार के कार्य और व्यक्ति के अविवाहित या विवाहित होने पर कन्या के जन्म का प्रतीक है। इसके अलावा लग्न या केतु से छठे, आठवें या बारहवें भाव में कमजोर और पीड़ित चन्द्रमा मानसिक तनाव, सोच-विचार करने वाला स्वभाव, व्यर्थ का भटकाव, व्यापार में हानि, सार्वजनिक कार्यों में धन का व्यर्थ उपयोग आदि को दर्शाता है।

केतु-मंगल दशा/ Ketu-Mars Dasha

कोणों या ग्यारहवें भाव में मंगल की गौरवपूर्ण स्थिति सरकार द्वारा सम्मान, जमीन-जायदाद का लाभ, भाईयों से सुख, साहस और इच्छाओं को पूर्ण करने की प्रवृत्ति को दर्शाती है। केतु या लग्न से छठे, आठवें या बारहवें भाव में कमजोर और पीड़ित मंगल विदेश यात्रा, दुर्घटना, आग या चोरी से नुकसान, यूरिनरी और यौन संबंधी समस्याओं आदि का प्रतीक होता है। वहीं, दूसरे या सातवें भाव में, मारक रूप में मंगल विष, फसल के पकने, गंभीर संक्रमण और मृत्यु समान स्थिति को इंगित करता है। 

केतु-राहु दशा/ Ketu-Rahu Dasha

तीसरे या ग्यारहवें भाव के कोणों में उच्च का राहु, सट्टेबाज़ी या अप्रत्यक्ष साधनों तथा निम्न जाति और पश्चिमी जातियों से लाभ और पश्चिमी देशों की यात्राओं को दर्शाता है। आठवें या बारहवें भाव में हानिकारक रूप से पीड़ित राहु गंभीर परेशानियों, पेट में कीड़े, गठिया संबंधी शिकायतों, आशंकित प्रकृति, मलेरिया बुखार और अचानक से होने वाले झगड़ों को प्रकट करता है। साथ ही, सातवें भाव में राहु विष, सर्पदंश से मृत्यु के खतरे को दर्शाता है।

केतु-बृहस्पति दशा/ Ketu-Jupiter Dasha

लग्न या केतु से कोण या ग्यारहवें भाव में उच्च का बृहस्पति शुभ होता है जो आत्मविश्वास, घर में शुभ कार्यों, संपत्ति, धन, पुत्रजन्म, पारिवारिक देवता की कृपा, नई नियुक्ति, परोपकार, पवित्र, ब्राह्मणों और उपदेशकों की संगति, विदेश यात्रा आदि कार्यों का संकेत देता है। लग्न या केतु से छठे, आठवें या बारहवें भाव में पीड़ित बृहस्पति, परिचित और संबंधियों से अलगाव, पद और सम्मान की हानि, चोरी द्वारा धन की हानि को दर्शाता है तथा दूसरे या सातवें भाव में बृहस्पति, मारक रूप में आकस्मिक मृत्यु देता है।

केतु-शनि दशा/ Ketu-Saturn Dasha

लग्न या केतु से ग्यारहवें भाव से शनि का संबंध, लक्ष्यों की प्राप्ति, शासकों का सहयोग और निम्न लोगों के नेतृत्व में धन को वर्णित करता है। छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित शनि स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं, कार्यों में अवरोध, सुस्ती, प्रसिद्धि की हानि, माता-पिता की मृत्यु, मुकदमों में विफलता, वात और पित्त की अधिकता के कारण पीड़ा, गृह परिवर्तन, संबंधियों के साथ अदालती मामलों को दर्शाता है। वहीं, मारक प्रभावों से युक्त शनि, स्थायी बीमारी द्वारा व्यक्ति की मृत्यु का कारण बनता है।

केतु-बुध दशा/ Ketu-Mercury Dasha

लग्न या केतु से ग्यारहवें भाव के कोणों या स्वराशि में उच्च का बुध भूमि लाभ, सामान्य सफलता, बिजनेस और व्यापार में वृद्धि, प्रतियोगिता में सफलता, ज्ञान की वृद्धि, उपयोगी वार्तालाप, धार्मिक ज्ञान, घर में धार्मिक समारोह, विद्वानों की संगति और सात्विक भोजन को दर्शाता है। छठे, आठवें या बारहवें भाव में कमजोर और पीड़ित बुध समृद्धि का नाश, मानसिक अशांति, स्थगित विवेकपूर्ण विषय, झगड़े, विपत्तियों का नाश करने के लिए तीर्थयात्रा, धोखाधड़ी करने वाली योजनाओं को निर्धारित करता है। वहीं, दूसरे या सातवें भाव में पीड़ित बुध वाणी की हानि, हकलाना तथा त्रिदोषों के असंतुलन के कारण मृत्यु का संकेत देता है।

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