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व्रत क्या है और इसकी क्या मान्यता है?

व्रत तिथियां

पूजन का अर्थ- भगवान की आराधना करना होता है। लगभग हर दिन कोई न कोई त्योहार मनाए जाने के कारण, भारत को त्योहारों का देश माना जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचने या जानने की कोशिश की है कि इतने व्रत/fast क्यों रखे जाते हैं? आइए, आज हम  समझाते हैं कि ये व्रत क्या और क्यों किए जाते हैं तथा इन व्रतों का क्या महत्व होता है?

व्रत का क्या महत्व होता है?/ What is the importance of Fasting?

किसी विशेष उद्देश्य की प्राप्ति के लिए, अन्न और जल का त्याग करने को व्रत/fast कहा जाता है। मनुष्यों में सद्गुण होने पर, सफलता और सुख की प्राप्ति होती है और दुराचारी होने पर, अत्यधिक उदासीनता और विषाद की प्राप्ति होती है। हालाँकि, संसार का प्रत्येक जीव प्रतिकूल दु:खों से बचने की इच्छा करते हुए सुविधानुसार आनंद की प्राप्ति करना चाहता है। मानव सभ्यता की स्थिति को समझने के बाद, विभिन्न प्रतिष्ठित और प्रसिद्ध संतों द्वारा मानव सभ्यता के लिए, पहले से ही वेदों पुराणों, स्मृतियों और ग्रंथों में सुख और शांति के लिए विभिन्न उपायों के साथ ही दु:खों से छुटकारा पाने के उपायों की भी व्याख्या की गई है।   अन्य सभी समाधानों में से, शांति की प्राप्ति के लिए, व्रत अत्यधिक महत्वपूर्ण समाधान होता है।

 

निःसंदेह, व्रत/fast भारतीय संस्कृति के सबसे अभिन्न अंगों में से एक है जिसका सिर्फ ऐतिहासिक महत्व न होकर भौतिक महत्व भी है। विभिन्न प्रकार के व्रत शरीर को आश्चर्यजनक रूप से लाभ पहुंचाते हैं; आमतौर पर, व्रत का अर्थ एक समय के भोजन का त्याग करना होता है। हालांकि, दोनों समय के भोजन का त्याग करने के कारण 'उपवास' इससे थोड़ा अलग होता है। व्रत रखने से, शरीर में स्थित सभी विषाक्त पदार्थ निकल जाते हैं और ऊर्जा प्राप्त करने की प्रक्रिया बढ़ जाती है। ‌ऐसा होने से, सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति होने के कारण आनंद की अनुभूति होती है।

 

इसके अलावा, मानव शरीर बहुत से बदलावों और  परिवर्तनों से गुजरता है, जो शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से बेहद फायदेमंद होते हैं और मानसिक शांति और स्थिरता को विकसित करने के साथ ही धार्मिक रूप से भी सुधार करते हैं। पूजन और उपवास, शरीर को शुद्ध करने के साथ ही  आत्मा को भी पवित्र बनाते हैं। व्रत/fast का आध्यात्मिक महत्व और अर्थ अत्यधिक आकर्षक होता है।

 

व्रत करने से, शरीर को आकाश तत्व की आपूर्ति होती है। 'उपवास' शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है जिसमें उप का अर्थ 'निकट' और वास या निवास का अर्थ 'रहना' है। इसलिए, आत्मा के निकट रहने को ही उपवास कहा जाता है। आत्मसंतुष्टि द्वारा ही अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति की जा सकती है। अतः, स्वस्थ रहना एक कर्तव्य और जिम्मेदारी होती है। वैज्ञानिक रूप से भी यह सिद्ध हो चुका है कि उपवास करने से शरीर, आत्मा और मन की सभी विषाक्तताएं और विकार दूर हो जाते हैं और आत्मा और शरीर स्वयं ही पवित्र और शुद्ध बन जाते हैं।

एकादशी व्रत का महत्व / Ekadashi Vrat Significance

एक बार लीला पुरुषोत्तम भगवान श्री कृष्ण द्वारा, पुण्यश्लोक धर्मराज युधिष्ठिर को एकादशी व्रत/Ekadashi Fasting रखने का निर्देश दिया गया था। इस विषय पर, भगवान श्री कृष्ण ने कहा, कि उपवास द्वारा दुख, चिंता और भय से छुटकारा पाने के लिए एकादशी उत्सव मनाया जाए, जो तुलनात्मक रूप से हजार यज्ञों के अनुष्ठानों के बराबर होने के साथ ही, चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति को भी सहज बनाता है। अतः, एकादशी के उपवास का अत्यधिक महत्व होता है। एकादशी का व्रत/fast of Ekadashi करने वाले व्यक्तियों द्वारा, दशमी के दिन मांस, लहसुन, प्याज, दाल जैसी कुछ अन्य निषिद्ध चीजों का सेवन नहीं किया जाना  चाहिए।

  • रात्रि में, ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए किसी भी प्रकार की विलासिता का आनंद नहीं लेना चाहिए।
  • एकादशी के दिन प्रातः काल, दातुन का प्रयोग नहीं करके नींबू, जामुन और आम के पत्तों को चबाकर, गले को उंगली से साफ करना चाहिए तथा पेड़ से पत्ते न तोड़कर टूटकर गिरे हुए पत्तों को चबाना चाहिए।   संभव न होने पर, मुँह को बारह बार पानी से धोना चाहिए।
  • अब, स्नान करने के बाद, मंदिर जाकर श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ करना चाहिए या पुजारी से गीता पाठ सुना जा सकता है। 
  • तत्पश्चात, भगवान से यह शपथ लेनी चाहिए कि आज से मैं किसी चोर, पाखंडी या बुरे व्यवहार करने वाले किसी व्यक्ति से न तो बात करूंगा और न ही किसी को चोट पहुंचाऊंगा। 
  • इसके अतिरिक्त, 'कीर्तन' के साथ ही, द्वादेश मंत्र 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' का जाप करना चाहिए। 
  • आवश्यकता होने पर, भगवान राम, कृष्ण और नारायण का सहस्रनाम भूषण का लॉकेट बनवाकर गले में धारण करना चाहिए।
  • सर्वशक्तिमान भगवान विष्णु का स्मरण करते हुए कहें कि 'हे त्रिलोकीनाथ! कृपया सम्मानपूर्वक इस व्रत को पूर्ण करने की शक्ति और ऊर्जा प्रदान करें।
  • भूलवश, किसी कुटिल व्यक्ति से बात करने पर, भगवान सूर्य नारायण की अगरबत्ती से आराधना करके क्षमा मांगनी चाहिए।
  • एकादशी के दिन घर में झाडू नहीं लगानी चाहिए क्योंकि ऐसा करने से चीटियों या अन्य सूक्ष्म जीवों के मारे जाने का भय रहता है। इस दिन बाल नहीं कटवाने चाहिए और ज्यादा नहीं बोलना चाहिए क्योंकि अधिक बोलने पर कभी-कभी ऐसी बातें कह दी जाती हैं जो  नहीं करनी चाहिए।
  • इस दिन यथाशक्ति दान करना चाहिए तथा किसी और के द्वारा दिया गया भोजन नहीं करना चाहिए। एकादशी के साथ दशमी का मेल पुराना माना जाता है।
  • वैष्णवों को, द्वादशी का दिन मिलाकर एकादशी का व्रत त्रयोदशी से पहले कर लेना चाहिए।
  • एकादशी (ग्यारस) के दिन व्रत रखने वाले व्यक्तियों को गाजर, शलजम, पत्ता गोभी और पालक जैसी चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए तथा केला, आम, अंगूर, बादाम और पिस्ता जैसे फलों का सेवन जरूर करना चाहिए।
  • सर्वप्रथम, भगवान को तुलसी पत्र के साथ भोग अर्पित करने के बाद ही, किसी भी चीज का सेवन करना चाहिए।
  • द्वादशी के दिन, ब्राह्मणों को दक्षिणा के रूप में मिठाई  देनी चाहिए।
  • क्रोध न करके अच्छा व्यवहार करना चाहिए।
  • इस व्रत को करने पर, समस्त समस्याओं से निजात मिलती है और दैवीय परिणामों की प्राप्ति होती है।

हिंदू धर्म में, पूर्णिमा ज्योतिष/full moon astrology के रहस्यों का पता चलता है। साल भर में, लगभग बारह पूर्णिमाएं और बारह अमावस्याएं होती हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, महीने के तीस दिनों को १५-१५ दिनों के अंतराल के दो पक्षों में बांटा जाता है, जिन्हें शुक्ल और कृष्ण पक्ष के नाम से जाना जाता है।

 

शुक्ल पक्ष की अंतिम तिथि को पूर्णिमा और कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि को अमावस्या के नाम से जाना जाता है। वर्ष में, कई महत्वपूर्ण दिन और रात होते हैं जिनका किसी भी व्यक्ति के मन और हृदय पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है, और उन महत्वपूर्ण दिनों में से एक पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है।

पूर्णिमा या पूर्ण चंद्र के दिन क्या होता है

चंद्रमा का संबंध कहीं न कहीं पृथ्वी पर मौजूद जल से होने के कारण, पूर्णिमा के अवसर पर समुद्र में ज्वार उठता है। चंद्रमा के खिंचाव के कारण, समुद्र का पानी  ऊपर की ओर खींचता है। मानव शरीर में भी 85% पानी होता है। पूर्णिमा के दिन पानी का गुण और गति में बदलाव आ जाता है।

 

वैज्ञानिक शोधों के अनुसार, इस दिन चंद्रमा का प्रभाव अत्यधिक प्रबल होता है जिस कारण रक्त में मौजूद न्यूरॉन सेल्स बेहद सक्रिय हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में, मनुष्य या तो उत्तेजित हो जाता है या भावुक हो जाता है। इस दिन, किसी भी प्रकार की तामसिक वस्तुओं  का सेवन नहीं करना चाहिए।

प्रदोष व्रत का महत्व / Pradosh Vrat Significance

प्रदोष व्रत या उपवास/Pradosh Vrat or Fast के दिन, सर्वशक्तिमान भगवान शिव की प्रार्थना करनी चाहिए। हिंदू धर्म में, इस व्रत को अत्यधिक महत्वपूर्ण आयोजनों में से एक माना जाता है। प्राचीन हिंदू कैलेंडर के अनुसार, प्रदोष व्रत चंद्र माह के 13 वें दिन मनाया जाता है, जिसे त्रयोदशी के नाम से जाना जाता है।

 

प्रदोष के दिन, भगवान शिव का पूजन करने से सभी पाप धुल जाते हैं, और 'मोक्ष' या 'मुक्ति' की प्राप्ति होती है। इस व्रत को 'प्रदोष' नाम देने के पीछे एक कारण या कहानी इस प्रकार है- क्षय रोग से पीड़ित चंद्र, मृत्यु के कगार पर थे। तब, भगवान शिव ने क्षय रोग का निवारण करके, उन्हें एक नया जीवन दिया; इसलिए इसे प्रदोष/Pradosh के रूप में जाना जाता है। जैसे, महीने में दो एकादशी आती है वैसे ही, प्रदोष भी महीने में दो बार आता है।

प्रदोष व्रत के लाभ / Pradosh Vrat Benefits

विभिन्न व्रतों के अनुसार ही, प्रदोष व्रत/Pradosh Fast से भी अत्यधिक लाभ प्राप्त होते हैं-

  • प्रदोष के दिन उपवास करने से, अच्छे स्वास्थ्य के साथ ही आयु में वृद्धि होती है।
  • सोमवार के दिन त्रयोदशी व्रत या रखने से, स्वास्थ्य अच्छा रहता है और सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है।   
  • मंगलवार के दिन, प्रदोष का व्रत रखने से सभी प्रकार के रोगों से मुक्ति मिलती है और विभिन्न स्वास्थ्य लाभों की प्राप्ति होती है।
  • बुधवार के दिन प्रदोष व्रत करने से, सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
  • गुरुवार को प्रदोष व्रत/Pradosh Fast रखने से, शत्रुओं से मुक्ति मिलती है।
  • शुक्रवार के दिन प्रदोष होने पर, वैवाहिक जीवन  समृद्ध शाली बनता है और सुख-शांति की प्राप्ति होती है। 
  • संतान प्राप्ति के लिए, शनिवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत का पालन करना चाहिए।

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