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ज्योतिष में गौरी योग/ Gauri Yoga in Astrology

हिंदू धर्म में त्रिदेव को प्रमुख देवताओं में से एक माना जाता है और भगवान शिव भी इसी त्रिमूर्ती का हिस्सा हैं। भगवान शिव के सहचरी पार्वती का दूसरा नाम गौरी भी है, जिन्हें पोषण प्रदान करने वाली अन्नपूर्णा के नाम से भी जाना जाता है तो वहीं, चंद्रमा भी माता और भोजन का प्रतिनिधित्व करता है। यही एक उपयुक्त कारण है कि मजबूत स्थिति में लाभकारी चंद्रमा के साथ, एक ग्रह योग उनके नाम पर आधारित है।

ज्योतिष की दृष्टि से, अन्य चंद्र योग चंद्राधियोग के समान किसी भी जन्मकुंडली के लिए एक उत्तम कारक होता है। यहां चंद्रमा स्वराशि या उच्च राशि में 1, 4, 7, और 10 वें भावों के कोणों या 1, 5 वें, 9वें भावों के त्रिकोण में होने के कारण, मौलिक रूप से प्रभावशाली होता है। इसके अलावा, चंद्रमा अत्यधिक लाभकारी बृहस्पति की युति में और अधिक प्रभावशाली होता है।

परिणाम/ Result

गौरी योग में जन्मे व्यक्ति, शारीरिक रूप से शानदार और आकर्षक, नैतिक गुणों और संतान वाले राजसी व्यक्ति के साथी, शत्रुओं को परास्त करने वाले तथा प्रशंसनीय होते हैं। साथ ही, चेहरे पर फूलों जैसी मुस्कान बिखेरने वाले यह व्यक्ति, अपनी  पारिवारिक वंश-परंपरा में वृद्धि करते हैं।

टिप्पणियाँ/ Comments

हिंदू ज्योतिष में, चंद्रमा मानव मस्तिष्क की प्रत्येक उपलब्धि, निर्भरता और सज्जनता की कुंजी है। गौरी योग में, योग का प्रभाव चंद्रमा की शक्ति पर निर्भर करता है।

दशमेश का नवांश स्वामी, दसवें भाव में लग्न स्वामी के साथ अपनी उच्च राशि के साथ अज्ञेय होने की स्थिति का परिणाम गौरी योग है। साथ ही, यह गौरी योग सांसारिक प्रतिष्ठा के महत्वपूर्ण घटक, दसवें भाव और लग्न का भी सहयोग करता है।

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